जाने कब ये दूरियां दूर होंगी
जाने कब इस चाँद की
चांदनी हमें भी तो नसीब होगी
जाने कब बहारों का
इस गली से गुज़रना होगा
जाने कब नदी किनारे
हमारा भी इक आशियाँ होगा
जाने कब तुम पर
मेरा कुछ तो हक सा होगा
जाने कब किस जनम में
हमारा भी तो मिलन होगा
जाने कब ये नदी के दो किनारे
समुन्दर में गिर के मिलेंगे
जाने कब ये प्राण तन से बिछुड़ कर
कब, कहाँ, किस पार मिलेंगे
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