ऐसा न हो कि तुम्हारी इस ज़िद में
यादों की महक फिजा में खो जाए
ये दूरियां फिर दर्द बन जाए
ये आँखे इंतजार में पथरा जाएँ
हम मुड़ें और रास्ते ये सारे बंद हो जाएँ
ये दिल भी धड़कने से मुकर जाए
ख्वाबो तक में साथ छूट जाए
न ही हम संग देख सकें नभ के ये तारे
दो प्रेम योगी यूं बिछुड़ें, वियोगी ही फिर रह जाएँ
No comments:
Post a Comment