धर्म से बड़ा इस संसार में कुछ भी नहीं है
पर प्रेम एक ऐसी दिव्य नीति है
जिस पर धर्म का कोई बंधन नहीं होता
निःस्वार्थ प्रेम सभी धर्मों से बड़ा होता है
परन्तु प्रेम का भी एक विधान है
प्रेम कुछ मांगता नहीं है
करना क्या है अर्पण, यही सिखाता है
प्रेमी की प्रसन्नता हेतु अपना सर्वस्व लुटा देना चाहता है
प्रेमी के लिए प्राण देना सरल होता है
कभी कभी उसके लिए जीना बहुत कठिन हो जाता है
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