तुम खुश रहो, आबाद रहो
फूलों की तरह खिलती रहो, महकती रहो
दूर रहे ये बेचैनी, ये बेरुखी
और मन में सिमटी ये वीरानी
जो तुम चाहो, वही हो जाए
जो तुम मांगो, वही मिल जाए
सच हो जाए सपने तुम्हारे
संजो रखे हैं तुमने जो सारे
नयी सोच हो, नयी पहल हो
ज़िन्दगी कुछ तो सरल हो
सुलझी न हो जो पहेली अभी तक
शायद उसका भी कोई हल हो
यादें छूटें, बंधन छूटें, साथ भी छूटे
नव वर्ष के उगते सूरज के ऐसे सुनहरे पल हों
या फिर गिरो ऐसे भंवर में प्यार के
दिल में कुछ ऐसी हलचल हो
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