सुबह होते ही इंतज़ार रहता है शाम का
सीख गया हूँ इस हसरत में, मैं दिन भर मसरूफ़ रहना
कि पहलू में तुम्हारे, शाम को, थोड़ा सा मैं रो लूँ
इंतज़ार है उस शाम का अब मुझे
जिसकी कोई सुबह न हो
वक़्त रुके, साँसे थमें ये
फिर कोई बंदिश न हो
ये ज़िंदगी बेवफा बने
और तुम मुझसे वफ़ा करो
मैं सदा तुममें
और तुम सदा मुझमें रहो
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