दूर हो कर ही समझा कि कितने क़रीब हो तुम
जुदा हो कर ही जाना कि प्यार में कितना है दम
हम क्यों प्यार को रुसवा करें, ऐ हमदम
यूं भी तो तुम प्यार भुलाए बैठे हो
तुमने कहा था क्या खूब
ख्यालों की दुनिया से बाहर निकलो
इनका कोई वजूद नहीं
सुन, ऐ मेरे फरेबी मेहबूब
तस्वीर नहीं ये, वक़्त से धुंधली पड़े जो
जहाँ भी मैं हूँ , रहती हो तुम वहीँ कहीं
कितने मजबूर हैं हम
न चाहते हुए भी दूर हैं हम
दिन में चैन, रातों में नींद कहाँ
तुम वहां और मैं तनहा यहाँ
न तेरी मुस्कराहट का सबब जाना
न ही तेरी ख़ामोशी का
मुस्कुराने से तो शिकवा नहीं
तेरी ख़ामोशी तो जान ले ही लेती है
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