तुम कहती हो
अनजाने से बंधन रोकते हैं तुमको
जाने कुब इन्हें तुम तोड़ पाओगी
अपने को उन्मुक्त करके
कुब दिल का हाल सुनाओगी
चिंगारी का दमन पकड़ के
कब तुम शोले सुलगाओगी
दुआ ये आखरी है खुदा से
इक जन्म मुझे और बख्शे
तुम्हे अपना बना लूं में
और तुम अपना बना लो मुझे
न तुम्हारी कोई मजबूरी हो
ऐसे तुम बरसो
तुम्हारी उम्र जो भी रहे
खुद उन्नीस साल ज़यादा मुझे बख्शे
एक साथ ही यहाँ से रूखसत हों
और एक साथ ही फिर वापसी हो
न तुम्हारी कोई मजबूरी हो
न ही ये उम्र का फासला हो
ऐसे मिले फिर कभी न बिछड़ें
जन्म जन्मांतर तक आलिंगित रहें
ऐसे तुम बरसो
कि दिल कि आग बुझा दो
रूह को सकूं ऐसा मिले
कि कशिश भी शर्मा जाए
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