Friday, March 4, 2011

इक दिन में कह ही जाऊंगी


तुम कहती हो
इक दिन में कह ही जाऊंगी
अनजाने से बंधन रोकते हैं तुमको 
जाने कुब इन्हें तुम तोड़ पाओगी 

अपने को उन्मुक्त करके 
कुब दिल का हाल सुनाओगी
चिंगारी का दमन पकड़ के
कब तुम शोले सुलगाओगी 

दुआ ये आखरी है खुदा से
इक जन्म मुझे और बख्शे 
तुम्हे अपना बना लूं में
और तुम अपना बना लो मुझे

तुम्हारी उम्र जो भी रहे 
खुद उन्नीस साल ज़यादा मुझे बख्शे 
एक साथ ही यहाँ से रूखसत हों 
और एक साथ ही फिर वापसी हो

न तुम्हारी कोई मजबूरी हो 
न ही ये उम्र का फासला हो 
ऐसे मिले फिर कभी न बिछड़ें 
जन्म जन्मांतर तक आलिंगित रहें

ऐसे तुम बरसो 
कि दिल कि आग बुझा दो 
रूह को सकूं ऐसा मिले 
कि कशिश भी शर्मा जाए 

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