ये कैसी परछाइयां हैं
रोना भी चाहें तो हँसते रहते हैं
आंसूं भी कहीं गुम से हो गए हैं
क्यों मौजों का इधर से गुजरना नहीं होता
ये सफ़र क्यों मुक्तसर सा नहीं होता
तेरी जुदाई ने इक नया रिश्ता समझाया है
तपती धूप में ठंडी हवा का झोंका सा आया है
ख़तम कर इसे या फिर शुरू कर इक नयी कहानी
भूल कर सब कुछ, आ गले लग जा इक बार दिल-जानी
इस ज़माने की हर रस्म-ओ-सितम सहने को तैयार हैं हम
ऐसा ना ही की आग तुझे लगे और खाक हों जाये हम
तुम पर मरने की चाहत लिए
न जाने क्यों हम जिए जाते हैं
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