मिलने के हर रोज़ कोई
ज़िक्रे-ए-जुदाई कि वो
सिसकती सी उदासी याद है
ख्यालों की झील किनारे
वो चाँद को पकड़ना याद है
रुखसार पे जुल्फों का आना
फिर यूं उन्हें झटक देना याद है
वो दिल को मह्काती सी
तुम्हारी गरम साँसे याद हैं
ख्यालों में गुम, अश्कों का छलकना
फिर यूं प्यासे रह जाना याद है
पलकों की छाँव में किये वो वादे
उन वादों से मुकरना याद है
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