अपनी नज़र से आग लगा जाते
आँखों से वाक्याँ बयां कर जाते
जो कांपते होंठ ना कह पते
चेहरे पे गुस्सा क्यों है
जब आँखों से छलकता है प्यार
ये तुम्हारी अदा भी खूब है
कि इंकार मैं छिपा है इकरार
क्यों रूठे वो क्या बताएं अमावास को
गर हमसे ही वो रु-ब-रु न हों
उन्हें आता है हम पर गुस्सा बार बार
हमे आता है इस गुस्से पे प्यार बेशुमार
No comments:
Post a Comment