रात पूरी हो गयी बात पूरी होने से पहले
उदासी भी इस दिल को भाती गयी
बैचैनी ख़्वाबों ख्यालों में छाती गयी
तेरे ख्यालों में भीगता रहता
कभी संभलता कभी फिसलता
तेरे अक्स से महकता हुआ सा
धीमी आँच मैं पकता हुआ सा
ये दूरिय क्यों नहीं पिघल जाती
ये शबनम क्यों नहीं घुल जाती
विरह का इक लम्हा भी जनम समां लगता है
मिलन कि आस में ये ज़हर भिऊ अमृत लगता है
ज़ालिम ज़ोर का इक झटका अब मार दे
क्यों तडपा तडपा के हलाल करती है मुझे
No comments:
Post a Comment