सागर कि लहरें संग संग घूमती हैं जैसे
चाँद कि चांदनी बरसती है सागर पे जैसे
कभी तो तुम बरसो मुझ पर वैसे
ऊंचे पर्वत गगन को चूमते हैं जैसे
कभी तो तुम मुझे चूम लो वैसे
सूर्य की रौशनी धरा को जकड़ती है जैसे
कभी तो तुम जकड लो मुझे वैसे
मस्त फिजाओं में फूल आलिंगित होते हैं जैसे
कभी तो तुम आलिंगन में लो मुझे वैसे
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