मालूम है कि मैं तेरी मंजिल नहीं
इक पल ठहर तो जा ठंडी छाँव मैं
फिर कहाँ होगा तेरा इस तरफ मुड़ना
मुडोगी तो पाओगी खड़ा वहीँ
नामुमकिन है छाया का कभी अलग होना
पास नहीं तो दूर से ही सही
देख तो ले कौन है तेरा यहाँ अपना
न सही कोई तेरी जवाबदेही
समझो तो इस दिल कि वेदना
"मेरे दिल में ऐसा कुछ नहीं"
ज़रूरी था क्या ऐसा कहना
No comments:
Post a Comment