याद है आज भी वो दिन मुझे
जब पहली बार देखा था तुम्हे
जब पहली बार देखा था तुम्हे
क्षण भर अक्स तुम्हारा दिखा था
जन्मों का नाता है, ऐसा लगा था
पा कर तुम्हे इस तरह खोना भी था
ये तो आखिर एक दिन होना ही था
मंजिल तुम्हारी बुलाती है तुम्हे
जानता हूँ बहुत दूर जाना है तुम्हे
न जाने हम तुम कल कहाँ होंगे
इस दुनिया की भीड़ में खो जाएंगे
कभी रोएंगे तो कभी मुस्कुराएँगे भी
सच ये भी है तुमको न भूल पाएँगे कभी
जिंदगी बाकी जी ही लेंगे कतरा कतरा
साँसें चलती रहेंगी इस आस में सदा
कहीं किसी मोड़ पर किसी राह में
मिल जाओं शायद कभी तुम हमें
कल का कुछ भी पता नहीं
आज देने को तुम्हे कुछ भी नहीं
एहसान इतना मुझ पर आखिरी करती जाओ
गुस्ताखियाँ मेरी माफ़ कर तुम दूर चली जाओ
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