ग़ज़ब ज़हर है, तेरी उनींदी यादों में
मज़ा अलग है, लम्हा लम्हा मरने में
जुदाई में क़सम खाई है तुम से न मिलने की कभी
हर मोड़ पर हसरत रहती है कि तुम दिख जाओ कहीं
हर मोड़ पर हसरत रहती है कि तुम दिख जाओ कहीं
वहम तुम्हारे ये कितने सुहाने
कि कभी तो भूल पाएंगे हम तुम्हे
तेरी नमकीन मस्तियों में उलझना अच्छा लगता था
प्यार भी तुम्हारा एक शरारत होगा, सोचा भी न था
न जाने महक कहाँ गयी हमारे ज़हन की
कि फूल बांटते बांटते रूह पत्थर हो गयी
ताल्लुक ख़त्म हो सकता है, रूह का रिश्ता नहीं
ख़ाक हो सकता है ये शरीर, पर मोहब्बत नहीं
ताल्लुक ख़त्म हो सकता है, रूह का रिश्ता नहीं
ख़ाक हो सकता है ये शरीर, पर मोहब्बत नहीं
सुना था इम्तिहान लेती है मोहब्बत
यहाँ तो इम्तिहान ने ले ली मोहब्बत
अच्छा किया, मेरी हालत देख कर मोहब्बत से मुकर गयी तुम
डूबती किश्ती को मल्लाह भी छोड़ देते हैं, खूब जानती थी तुम
मिले तुम्हे जहाँ की खुशियाँ, कोई मुझ सा न मिले
फिर कभी, कोई किसी से बेइन्तहा मोहब्बत न करे
नफरत तो मंज़ूर थी, मोहब्बत ने मारा हमें
दूरियां तो बर्दाश्त थी, नजदीकियों ने मारा हमें
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