चुप चुप से क्यों हो तुम
क्यों गुमसुम से हो बैठे
आ जाती क्यों नहीं
अब तुम मेरी बाँहों में
क्यों हो यूं तकते
तुम ढलते सूरज को
चांदनी रात में क्यों नहीं
पहचानती तुम अपने प्यार को
क्यों इन यादों में तुम
यूं खोये हुए बैठे यहाँ
खुले आसमां में क्यों नहीं
जुल्फें लहरा के देखती तुम ज़रा
सूखा मन लिए
यूं तन्हा सी तुम क्यों हो
बारिश इस प्यार की से
तुम बचती छुपती सी क्यों हो
जाती क्यों नहीं तुम
बैठते थे कभी हम तुम जहाँ
कहती तुम अब क्यों नहीं
पहले जो कहा करती थी तुम सदा
रास्ता कठिन और मंजिल नहीं
फिर भी क्यों तुम रूकती नहीं
मोहब्बत -ए- मंज़र से निकल जाना
इतना भी आसां नहीं
क्यों गुमसुम से हो बैठे
आ जाती क्यों नहीं
अब तुम मेरी बाँहों में
क्यों हो यूं तकते
तुम ढलते सूरज को
चांदनी रात में क्यों नहीं
पहचानती तुम अपने प्यार को
क्यों इन यादों में तुम
यूं खोये हुए बैठे यहाँ
खुले आसमां में क्यों नहीं
जुल्फें लहरा के देखती तुम ज़रा
सूखा मन लिए
यूं तन्हा सी तुम क्यों हो
बारिश इस प्यार की से
तुम बचती छुपती सी क्यों हो
जाती क्यों नहीं तुम
बैठते थे कभी हम तुम जहाँ
कहती तुम अब क्यों नहीं
पहले जो कहा करती थी तुम सदा
रास्ता कठिन और मंजिल नहीं
फिर भी क्यों तुम रूकती नहीं
मोहब्बत -ए- मंज़र से निकल जाना
इतना भी आसां नहीं
सुहाते नहीं ये आंसूं
आँखों से, जिनमे प्यार हो
करती क्यों तुम नहीं
दिल जो तुमसे कहता हो
आँखों से, जिनमे प्यार हो
करती क्यों तुम नहीं
दिल जो तुमसे कहता हो
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