इनकार के बाद भी इकरार की चाहत क्यों है
राह बदल कर भी हर मोड़ पर तुम्हारा इंतज़ार क्यों है
राह बदल कर भी हर मोड़ पर तुम्हारा इंतज़ार क्यों है
बिना मतलब के तुम आओ कभी, ऐसी ललक क्यों है
दूर रह कर भी, हर पल तुम्हे देखने की आरज़ू क्यों है
हकीकत जान कर भी, ख़्वाबों को हक़ीक़त बनाने की तमन्ना क्यों है
ज़हन में तुन ही तुम हो छाई हुई, फिर तुम्हारी यादें इतनी हसीं क्यों है
मैं तुम्हारा न सही, फिर बाँहों में तुम्हे भरने की कशिश क्यों है
इतनी ज़िल्लत के बाद भी, तुम पर ऐतबार क्यों है
तुम्हारी एक मुस्कान पर मर-मिटने की हसरत क्यों है
तुम्हारी साँसों पर हक नहीं, मेरी उखडती साँसों को फिर ज़रुरत क्यों है
मेरी रूह को तेरे जिस्म की खुशबू इतनी अपनी सी लगती क्यों है
तुमसे इतना प्यार क्यों है
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