Tuesday, October 15, 2013

तुम नहीं तो कुछ भी नहीं

मैंने तो तुम्हारी जिंदगी में जाना छोड़ दिया
जिंदा हूँ फिर भी अभी थोडा सा मैं, न जाने किस तरह
तुम मेरे ख्वाबों में आना कहीं छोड़ न देना
बची खुची साँसें भी बिखर जाएंगी सूखे पत्तों की तरह

तुम तो नफरत भी न निभा पाओगी इतनी हमसे
तुमसे मोहब्बत निभाई है मैंने जितनी शिद्दत से

तुम्ही बता दो मुझे, किस तरह छोड़ दूं तुम्हे
मेरी साँसों को तुम्हारी आदत जो हो गयी है 

तकलीफ बढ़ती जाती है तुम्हारे दीदार से
तुम्हे देखने की आदत मगर जाती ही नहीं  

तुम्हारा नशा इस क़दर मेरी रूह पर छाया है
यूं रोज़ किश्तों में मरने का कुछ और ही मज़ा है

जिंदगी होती है ऐसी ही कुछ सही तो कुछ ग़लत
एक मोहब्बत ही ऐसी है जो कभी होती नहीं ग़लत

 

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