इतना क्यों खुदगर्ज़ समझती हो मुझे
मेरी हर बात को हमेशा गलत ही समझा तुमने
मोहब्बत की है तुमसे, यही एक खता हुई है मुझसे
ज़िंदगी की मेरी कहानी अजीब
तुम दूर हो कर भी हो इतने करीब
तुम्हारे बिना रह नहीं सकता
और तुम्हारे संग रहा नहीं जा सकता
मुमकिन है ये कि मैं खुद को भूल जाऊं
ये मुमकिन नहीं कि तुम्हे एक पल भी भुला पाऊँ
ज़हे नसीब ये दर्द तुम्हारी जुदाई का
ज़िंदगी गुजरने का एक ही सहारा है ये अब मेरा
बिन मांगे सब कुछ दिया तुमने; दर्द, ग़म, झूट, धोखा, रुसवाई और बेवफाई
प्यार माँगा था तुमसे, बस एक वही नहीं तुम दे पाई
क़ुबूल मुझे कि हर किसी को नहीं मिलता यहाँ प्यार ज़िंदगी में
ज़हे नसीब, जो भी दिया है तुमने, अलग ही मज़ा है उसे जीने में
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