Monday, December 23, 2013

अब भी हर पल तुम्हारा इंतज़ार है

जा नहीं करता मैं तोबा इश्क़ से, तुम मगर परेशां न हो  
वो इश्क़ ही क्या जिसमे यार बेवफा न हो

वक़्त है झौंका हवा का और हम हैं सूखे पत्ते 
अगले पतझड़ में हम कहाँ, तुम कहाँ, कौन जाने  

चल देतें हैं अब हम  अपनी अपनी राह पर 
शायद ये राहें फिर मिलें कहीं किसी चौराहे पर  

अब न ढूंढ़ना मुझे वक़्त की गर्द-ऐ-गर्दिश में
तेरे दिल में नहीं हूँ तो फिर कहीं भी नहीं हूँ मैं

तेरी हर ज़िद, तेरा हर ज़ुल्म किया गवारा 
देखते हैं तुझे रहम कहाँ तक नहीं आता 

तुमने तो कह दिया, न कोई वास्ता, न मुझसे कोई सरोकार है  
मैं कैसे कह दूं कि अब भी हर पल तुम्हारा इंतज़ार है

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