तुम पर कोई इलज़ाम नहीं
तुमसे कोई शिकायत नहीं
अपनी ही उल्फत में मैं ऐसा घिरा
इस उल्फत को हम-एहसास समझता रहा
तुमने इसे दोस्ती का नाम दे दिया
मैं इश्क को नूर-ए-जिंदगी समझता रहा
तुमने इस जिंदगी को किस्मत समझ लिया
मैं ही ख़्वाबों में महल बनाता रहा
क्या पता था, तुम्हारा गुज़र इनमे कहाँ
में तुममे खुदा से मिलता रहा
तुमने मुझसे मिलना गवारा न समझा
No comments:
Post a Comment