तुमने पूछा क्या होता है प्यार
न बातें कुछ हों कहने को
न ही कुछ हो सुनने को
यूं ही चुप चुप सी मुलाकातें
जान लें मन कि अनकही बातें
मिलने के बाद फिर मिलने की चाहत हो
बिन पिए जब नशा सा छा जाता हो
मन जब ग़ुलाम हो उनके ख्यालों का
रहनुमा बन बैठा हो वो जब ख़्वाबों का
मंजिल भी वही और रास्ता भी वही लगे
विरह का ज़हर भी जब अमृत समान कगे
अपना सब कुछ वार करने को जी चाहे
अपनी हस्ती मिटा देने को जी चाहे
दिन में मदहोशी और रातें जागी सी हों
कोई तमन्ना न हो, न ही कुछ हासिल करने को हो
लगे कि समय यहीं रुके, और सांसे थम जाएँ
जब वो हमारी बाँहों में हों समाये
इसे कहते हैं प्यार
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