Tuesday, March 19, 2013

क्यों नहीं उड़ जाते हैं

प्यार मुझे भी है
प्यार तुम्हे भी है
इतने गिले शिकवे फिर क्यों होते हैं
पास होते हुए भी फासले क्यों होते हैं

एक दुसरे के सपने जला के
राख हम खुद भी तो होते हैं
रुख बदलें या राह बदलें
तो भी ग़म ही तो मिलते हैं

ख़ुशी देने के अतिरेक में
आंसुओं में डुबो जाते हैं
दिल पे पत्थर रख के
ये शीशे के वादे तोड़ देते हैं

काली अंधियारी रातों के  
तूफानों में भी ऐ हमदम मेरे
ये बादल जज़्बात-ऐ-इश्क के
क्यों नहीं उड़ जाते हैं

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