अपनी छवि बनाई के, मैं प्यारी के पास गया
छवि देखी जब प्रेम की, मोहे अपनी भूल गया
छवि देखी जब प्रेम की, मोहे अपनी भूल गया
बहुत कठिन ये डगर प्रेम की, कैसे मैं चल पाऊँ
काहे मोसे नैन मिलाये, अब कैसे मैं जी पाऊँ
दरिया ये ऐसा प्रेम का, उलटी वा की धार
जो उभरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार
तन मेरा पर मन है तेरा, दोनों रंगे एक ही रंग
सो जाऊं गहराती रात मा, जो जागूं तो तेरे संग
प्रेम का रंग चढ़ा है ऐसा, रंग चढ़े न कोई दूजा
ऐसा रंगा कि रंग न छूटे, चाहे धोवुं सारी उमरिया
लाल न रंगा, हरा न रंगा, अपने ही रंग में रंग दिया तूने
होरी के इस पावन उत्सव पर, एक रंग तू मेरा लगा ले
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