ये रिश्ता यूं बेनाम ही सही
तुमसे कहता रहा में बार बार
अब खामोश हे मेरा इकरार
इसे नसीब का खेल न समझो
की शिकस्त दे कर तुम जीत समझो
ख़्वाब को हकीक़त समझना मेरा कसूर था
पल भर के साथ को जिंदगी समझना मेरा कसूर था
ये न सोचना मैं सदा रोता रहूँगा
यादों में तेरी कभी मुस्कुराया भी करूंगा
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