मुझे तुम पर है बहुत यकीन
फिर क्यों मरीचिका बन कर आती हो
और चिंगारी सी भड़का जाती हो
तुम्हारे लिए क्षण भर का खेल है ये
संभलने में युग लग जाते हैं मुझे
सिमटा सा स्वयं को समेटता रहता हूँ
सिसक सिसक कर मुस्कुराता रहता हूँ
ये कैसे मित्रता है तुम्हारी
जो दयनीयता नहीं समझती मेरी
मैंने दोस्ती खूब है निभाई
तुम्हारी दोस्ती पर बदली है छाई
हाथ जोड़ कर बड़ी विनम्रता से प्रार्थना है मेरी
बना के रखा करो थोड़ी स्थानिक सी दूरी
कठिन है संवेग इन नजदीकियों का
थामा न करो तुम हाथ मेरा
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