ये मौजें अंगडाइयां क्यों लिया नहीं करती
गालों पे ये भंवर शांत क्यों नहीं होते
ये लबों के प्याले क्यों छलक नहीं जाते
ये छोटा सा लम्हा क्यों ख़तम नहीं होता
लाख जलाता हूँ ये क्यों भस्म नहीं होता
ये उलझी सी शाम क्यों सुलझ नहीं जाती
कहीं किसी मोड़ पर ये रात तन्हा क्यों नहीं मिलती
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