Sunday, September 12, 2010

दुपट्टा तेरा


हर वक़्त तुझ से लिपटा रहता 
कानों में तेरे गुनगुनाता रहता
हवा के झोंके से बातें करता 
मदमस्त सा ये झूमता रहता 

चेहरे पर, फिर कमर पर ये आ जाता 
यूं ही चड़ता उतरता ये रहता 
कभी तेरे आंसुओं को पीता 
कभी ख़ुशी में तेरी ये शरीक होता 

कभी बेकाबू हो के ये सरकता
कभी सीने से ये लग जाता 
कभी तेरे कदम चूमता
कभी धड़कन बन मुझ पर ये हँसता 

ता उम्र रश्क करता रहा मैं इस से 
या खुदा, दुआ ये आख़िरी कबूल हो 
इस रूह के सकून के लिए, बस
कफ़न तेरे दुपट्टे का नसीब हो

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