Sunday, March 23, 2014

आ कर मुझे अब गले लगा लो !

जैसे जल बिन तड़पत मछली 
तुम बिन तड़पूँ वैसे ही मैं भी
बरखा बरसे तो साँस आये उसे भी 
तुम बरस जाओ तो प्राण आयें मेरे भी
चंद साँसें मुझे भी दे जाओ  
आ कर मुझे अब गले लगा लो 

आँखों में मधुशाला बसाये 
हंस कर तुमने गुलशन महकाये
तुन बिन जीवन सूना सा लगे 
तुम मिल जाओ तो दर्द दवा बन जाए  
इस उलझन से मुझे निकालो 
आ कर मुझे अब गले लगा लो 


अंधियारों में भटका मैं, मुस्कुराना भूल गया हूँ 
इस भरी सड़क पे अकेला मैं थक सा गया हूँ 
कहाँ गए वो मेरे अपने, बसते थे सपनों में जो मेरे  
प्रेम से अपने, हर लो सारे दर्द ये मेरे  
हर मंज़िल पर मुझे सम्भालो 
आ कर मुझे अब गले लगा लो 

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