Monday, March 25, 2013

इंतज़ार कभी तो होगा ख़त्म ये

चाहा है तुम को जैसे
चाहती हो तुम भी वैसे
विश्वास खुद पर इतना है मुझे

माना है मैंने शुरू से
मानोगी एक दिन तुम भी वैसे 
समझ इतनी ज़रूर है मुझे

तुम्हारा इंतज़ार है जन्मों से
इंतज़ार कभी तो होगा ख़त्म ये
विश्वास खुदा पर इतना है मुझे

बहुत कह चूका, और क्या कहूं अब मैं 
कभी तो समझोगी तुम ही खुद से
विश्वास तुम पर इतना है मुझे

विश्वास टूटने से अच्छा है
सदा इंतज़ार में ही कटे जिंदगी ये
जिंदगी तो क्या, मौत भी न हिला सके मुझे

न तुम कुछ बोलो, न ही बोलूं कुछ मैं
खुश रहो तुम और वह भी खुश रहे
जिंदगी को शायद अब यही आस है हमसे

तुम जो भी कहो, चलो सब कबूल मुझे 
तुन भी डटे रहो, मैं भी डटा रहूँ ऐसे
मैं भी यूं ही तन्हा रहूँ, तुम भी अलग रहो मुझ से

चलो चलते रहें सामानांतर रेखाएं जैसे
शायद कहीं किसी मोड़ पर ये रेखाएं मिलें
या फिर निरंतर यूं ही फासले बने रहें

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