Monday, March 7, 2016

तुम्ही पे दम निकले हमारा

वो शोख तो मसरूफ-ए-मोहब्बत था कहीं और 
हम इज़हार भी करते तो बेकार ही करते

चल देतीं तुम बेपरवाह यूं हाथ छुड़ा कर 
हम दामन पकड़ते तो बेकार ही पकड़ते 

तुम्हारा खुद का इख्तियार तुम पे न था  
हम इंतज़ार भी करते तो बेकार ही करते 

तुमसे क्या शिकवा करें वफा-ओ-मोहब्बत का 
जिस दिल पे नाज़ था मुझे, उसी ने साथ छोड़ दिया 

फ़ासलें हुए लाख, पर दिल से दिल जुदा हुआ नहीं 
मेरा हक़ था तुमपे, जो तुम से कभी अदा हुआ नहीं 

इतनी भी क्या बेदर्दी, झटक लिया दामन यूं 
न सही पूरी ज़िंदगी, चंद लम्हे ही अपने उधार दे जाती 

अपनों की फिक्र, दुनिया का ज़िक्र, खुदा की इबादत 
सुब कुछ भुला दिया तेरी पहली इश्क़-ए-नज़र  ने 

मोहब्बत में नहीं कुछ फ़र्क़ अब जीने और मरने का 
यही सोच जिया करते हैं कि तुम्ही पे दम निकले हमारा  

 

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