Sunday, June 17, 2018

मुबारक हो एक नयी ज़िंदगी तुम्हें

वो इश्क़ ही क्या जो वस्ल पे निसार  हो
आशिक़ की हिज्र से हमेशा की यारी है

अभी इश्क़ मुकम्मल नहीं, ये खेल अभी भी जारी है
मैं जीता तो तुम मेरी, तुम जीती तो हम तुम्हारे हैं

बिन तुम्हार्रे कभी आयी नहीं, नींदों से दुश्मनी पुरानी है
यी कैसे बेक़रारी है, मेरा साया मुँह पर ही भारी है

महक तुम्हारी, ख्वाब तुम्हारे, यादें भी सारी तुम्हारी हैं
बिन तुम्हारे रूकती भी नहीं, ये साँसें भी कम्बख्त तुम्हारी हैं

चिराग-ए -इश्क़ साथ लिए हैं अब फिरते
जाने किस गली में कब कहाँ रात हो जाये

मुबारक हो एक नयी ज़िंदगी तुम्हें
हमारी ज़िंदगी तो अब उधारी है



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