चली जाओ
दूर चली जाओ
दूर चली जाओ
अपनों के पास चली जाओ
कर्त्तव्य-परायणता की खातिर
जिम्मेदारियां निभाने की खातिर
अपने सगों और प्रियतम की खातिर
जाते जाते बस इतना रहम करती जाना
कहीं किसी मोड़ पर मिल न जाना
मिल जाओ तो अनजान बन कर निकल जाना
मैं समझ लूँगा कि ख़्वाब टूट गया मेरा
सपनों कि संगिनी का साथ छूट गया मेरा
यकीं है मगर कि कहीं, किसी वजूद में तो मिलन होगा हमारा
इल्तजा बस ये इक आख़िरी है खुदा से
ऐसा न करे कभी कोई इश्क किसी से
भरोसा न कहीं उठ जाये इंसां का इश्क से
No comments:
Post a Comment