Friday, July 2, 2010

तुम्हारा इंतज़ार था

अब समझ आया मुझे 
इतनी बाद में
क्यों रुका रहा यहाँ 
किसकी बाट में
तुम्हारा इंतज़ार था 

कितनी आवाजें आयीं 
बुलाने को मुझे 
आँखें नम हो जातीं
पैर जड़ हो जाते 
तुम्हारा इंतज़ार था 

दिन में होश ना था 
रातें जागी सी थीं 
सुबह होती, फिर शाम हो जाती 
तुम्हारे दीदार को 
तुम्हारा इंतज़ार था 

ख़्वाबों में चैन ना था 
ख्यालों में ढूँढता रहा 
इक पल का क़रार ना था 
मन को तुम्हारे बिना 
तुम्हारा इंतज़ार था 

मौसम आते रहे, जाते रहे 
सितारे टूटते रहे 
फिर आवाज़ तुम तक पहुंची 
और तुम आ गयी
तुम्हारा इंतज़ार था 

मिली जो तुम बरसों के बाद 
खिल उठा वो कुम्हलाया सा ख्वाब 
वही खनक थी हंसी मैं 
वही महक थी ज़िन्दगी मैं 
तुम्हारा इंतज़ार था 

सोचने का मंज़र ना था 
एक नज़र देखा 
और पहचान लिया 
झट से अपना बना लिया 
तुम्हारा इंतज़ार था 

कोई तमन्ना बाकी रही नहीं 
बिछड़ने का ग़म भी नहीं 
कुछ पलों का अहसास ये  
काफी है ज़िन्दगी के लिए 
तुम्हारा इंतज़ार था 

अब कुछ ही पलों का साथ है 
कभी भी जाना हो सकता है 
तुन्हारी यादों का ये सहारा 
ज़िन्दगी ना सही, अंत तो करेगा ही सुहाना 
तुम्हारा इंतज़ार था  

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