Friday, July 30, 2010

उन्हें आता है हम पर गुस्सा बार बार

अपनी नज़र से आग लगा जाते 
भीगी पलकों से सितम ढा जाते
आँखों से वाक्याँ बयां कर जाते 
जो कांपते होंठ ना कह पते 

चेहरे पे गुस्सा क्यों है
जब आँखों से छलकता है प्यार 
ये तुम्हारी अदा भी खूब है
कि इंकार मैं छिपा है इकरार 

क्यों रूठे वो क्या बताएं अमावास को 
गर हमसे ही वो रु-ब-रु न हों 
उन्हें आता है हम पर गुस्सा बार बार
हमे आता है इस गुस्से पे प्यार बेशुमार 

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