Sunday, October 31, 2010

छोड़ना है ही हाथ तो

छोड़ना है ही हाथ तो ख्वाइशें तो न दो 
अक्स है रखना धुंधला तो ख्याल तो न दो
महक नहीं तुम्हारी जिसमे ऐसे ख़्वाब तो न दो 
बेरुखी ही सही, इंतजार में रमने तो दो 

तन्हा ही है रखना तो पल भर का साथ तो न दो 
मय के प्याले नहीं तो प्यास तो न दो 
दवा नहीं तो आँखों मैं नमी तो न दो 
प्यार न सही पर प्यार में ज़ख्म तो न दो 

मरहम न सही पर ज़ख्मों पे शूल तो न रखो 
ज़हर देना है तो दो, जिंदगी ज़हर तो न करो 
लफ्ज़ बिखरने लगें है अब ख़ामोशी में रहने दो 
जिंदगी न सही, मरने तो चैन से दो  

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