Wednesday, December 1, 2010

तू ही तू


तेरी आँखों में ज़ोर-ए-इश्क न देखा होता 
ये नशा मुझ पर क्यों छाया होता

ये हवा जो तुझे छू कर न आई होती
मेरे ज़हन में तेरी ख़ुशबू कैसे होती 

तेरी खनकती हसीं की झंकार न होती 
मेरी रूह यूं ही मुस्कुराई न होती 

जुल्फें जो तूने न बिखराई होती 
दिल पे यूं घटाएँ कैसे बरसी होती 

जिंदगी में रंग जो तूने न भरे होते 
ख़्वाब मेरे बस बिखर गए होते  

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