Friday, December 24, 2010

कली की व्यथा

ओ डाली 
ये क्या किया तुमने डाली
अभी नन्ही सी तो खिली थी जिस पर, वो डाली 
क्यों तुमने बेरहमी से काट डाली 

अभी अभी ती जन्मी थी 
अभी ही तो कोंपल फूटी थी 
कुछ सांसे तो चलने दी होती 
पहली किलकारी तो सुनी होती 

कुछ सूर्य कि ऊष्मा तो लेने दी होती 
कुछ ओस कि बूंदे तो चखने दी होती 
कुछ मस्त हवा से गुनुनाने तो दिया होता 
कुछ वृक्ष से नाता तो बनने दिया होता 

कल में फूल बन इठलाती फिरती 
तुम्हे ही अपने रंगों से सजाती 
तुम्हे यूं अपनी सुगंध से महकाती 
और फिर प्रेमी को मैं न्योता देती 

इस प्रणय मिलन में क्यों तुमने बाधा डाली 
ये क्या किया तुमने डाली 
अभी नन्ही सी तो खिली थी जिस पर, वो डाली 
क्यों तुमने बेरहमी से काट डाली

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