Monday, February 9, 2015

आखिरी इंतज़ार

सुबह होते ही इंतज़ार रहता है शाम का 
कि कब तुम्हारे आगोश में सिमट जाऊँ
सीख गया हूँ इस हसरत में, मैं दिन भर मसरूफ़ रहना
कि पहलू में तुम्हारे, शाम को, थोड़ा सा मैं रो लूँ  

इंतज़ार है उस शाम का अब मुझे 
जिसकी कोई सुबह न हो 
वक़्त रुके, साँसे थमें ये 
फिर कोई बंदिश न हो 

ये ज़िंदगी बेवफा बने 
और तुम मुझसे वफ़ा करो 
मैं सदा तुममें
और तुम सदा मुझमें रहो 

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