Wednesday, November 30, 2011

मैं मिलन के जलाता और तुम विरह के बुझाती


मैं सपनों में सुहाने से रंग भरता 
तुम्हारा मन जग जाता और छुप जाता 

तुम्हारे आंसुओं की कल कल सुनता 
जीवन-मरण का सवाल बन जाता 

मैं लहरों पर सवार दूर कहीं निकलता 
पहली लहर में ही जी तुम्हारा उचाट होता 

मेरे वंदन स्वर बिखर जाते, मैं-तुम छूट जाते 
वरन-फूल लहरों के साथ बह जाते 

प्रणय के दीप, जब गहराती रात में चेतना भटकती 
मैं मिलन के जलाता और तुम विरह के बुझाती

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