Friday, June 14, 2013

काश मैं भी इक झूट होता !

साँसें छूट सकती हैं
तेरा साथ नहीं कभी मगर
मैं तेरी उलझन ही सही
तू ज़िन्दगी है मेरी मगर

न तू जुदा होती है
न ही तेरी ये यादें
बस एक बार और आँखों में है देखना तेरी
मुझे आज भी यकीं नहीं, कि तुम मेरी नहीं

तेरा ख्याल है कि जाता नहीं
तेरा जवाब है कि आता नहीं
मैं तेरा हूँ, जान गयी हो तुम तो ये
तुम किसकी हो, खबर होगी कब मुझे

तुम्हे कभी हासिल ही नहीं कर पाया मैं
तुम्हे खोने का हर पल अहसास फिर क्यों है मुझे
टूटे पत्तों की तरह बिखर गया हूँ 
तुमने समेटा क्यों, यूं जलाने के लिए

यूं हो कर तुमसे जुदा
फ़क़त कुछ ऐसा हुआ
तेरा कुछ गया नहीं
मेरा कुछ बचा नहीं
 
उनके दीदार को दिल, तड़पता है रहता
सामने आते हैं तो देखा भी नहीं है जाता
मोहब्बत के बाद, क्यों हो गयी तुम जुदा
लंबी उम्र की दुआ भी अब लगती है सजा

क्या कहूं तुम से 
मनाऊँ तुम्हें कैसे
वजह तुम्हारे रूठने की
जब मोहब्बत ही हो मेरी

लबों पे मुस्कराहट हुआ करती थी
आँखों में शरारत हुआ करती थी
बेवजह तुम मुहसे लड़ा करती थी
बस तभी से मोहब्बत शुरू हुई थी हमारी

खता हमसे हुई
सजा हमें देती
तेरी हसीं जुल्फों का
मगर क्या कसूर था 

तेरा दिल में तो बसता
काश मैं भी इक पत्थर होता
तेरा साथ तो न छूटता
काश मैं भी इक फरेब होता
तेरे होंठों से तो लगता
काश मैं भी इक झूट होता 

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