Tuesday, September 15, 2015

दूर हो कर ही समझा कि कितने क़रीब हो तुम

दूर हो कर ही समझा कि कितने क़रीब हो तुम 
जुदा हो कर ही जाना कि  प्यार में कितना है दम 
हम क्यों प्यार को रुसवा करें, ऐ हमदम 
यूं भी तो तुम प्यार भुलाए बैठे हो 

तुमने कहा था क्या खूब 
ख्यालों की दुनिया से बाहर निकलो 
इनका कोई वजूद नहीं 
सुन, ऐ मेरे फरेबी मेहबूब 
तस्वीर नहीं ये, वक़्त से धुंधली पड़े जो
जहाँ भी मैं हूँ , रहती हो तुम वहीँ कहीं  

कितने मजबूर हैं हम 
न चाहते हुए भी दूर हैं हम 
दिन में चैन, रातों में नींद कहाँ 
तुम वहां और मैं तनहा यहाँ 

न तेरी मुस्कराहट का सबब जाना 
न ही तेरी ख़ामोशी का  
मुस्कुराने से तो शिकवा नहीं 
तेरी ख़ामोशी तो जान ले ही लेती है 

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