Wednesday, May 23, 2012

चलो इक बार फिर से ...


चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएँ हम दोनों -2 
न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी कि 
न तुम मेरी तरफ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से 
न मेरे दिल कि धड़कन लडखडाये मेरी बातों में 
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्म-कश का राज़ नज़रों से 
चलो इक बार फिर से ...

तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से 
मुझे भी लोग कहते हैं  कि यह जलवे पराये हैं 
मेरे हमराह भी रुस्वाइयां हैं मेरे माझी की -2
तुम्हारे साथ भी गुजरी हुई रातों के साये हैं 
चलो इक बार फिर से ...

तार्रुफ़ रोग हो जाए तो उसको भूलना बेहतर 
ताल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा 
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन -2
उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा 
चलो इक बार फिर से ...

 
गुमराह (१९६३) 
 

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