Sunday, September 29, 2013

बावरी

बेशर्मियाँ बर्बादियाँ
ये है इश्क की शैतानियाँ
ये फितूर जो सर पर सवार हो
जीना भी फिर दुश्वार हो

इस रोग का कुछ सूझे न
कोई फरक इसे बूझे न
ये हरारतें अब उतरें न

है सरफिरी ... ये आशिक़ी
मदमस्त सी ... ये आशिक़ी
कमबख्त भी ... ये आशिक़ी

है बावरी ... ये आशिक़ी
ग़ुस्ताख सी ... ये आशिक़ी
बेख़ौफ़ सी ... ये आशिक़ी 

बावरी 

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