Friday, November 15, 2013

ज़हे नसीब

इतना क्यों खुदगर्ज़ समझती  हो मुझे 
खुदा कसम कभी ठीक से देखा भी नहीं तुम्हे
मेरी हर बात को हमेशा गलत ही समझा तुमने 
मोहब्बत की है तुमसे, यही एक खता हुई है मुझसे 

ज़िंदगी की मेरी कहानी अजीब 
तुम दूर हो कर भी हो इतने करीब 
तुम्हारे बिना रह नहीं सकता 
और तुम्हारे संग रहा नहीं जा सकता

मुमकिन है ये कि मैं खुद को भूल जाऊं 
ये मुमकिन नहीं कि तुम्हे एक पल भी भुला पाऊँ 
ज़हे नसीब ये दर्द तुम्हारी जुदाई का 
ज़िंदगी गुजरने का एक ही सहारा है ये अब मेरा

बिन मांगे सब कुछ दिया तुमने; दर्द, ग़म, झूट, धोखा, रुसवाई और बेवफाई 
प्यार माँगा था तुमसे, बस एक वही नहीं तुम दे पाई 
क़ुबूल मुझे कि हर किसी को नहीं मिलता यहाँ प्यार ज़िंदगी में
ज़हे नसीब, जो भी दिया है तुमने, अलग ही मज़ा है उसे जीने में 

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